बिलासपुर 27 अक्टूबर 2025 (नवचेतना न्यूज़ छत्तीसगढ़)।छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने बेटियों के संपत्ति अधिकार को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि किसी पिता की मृत्यु 17 जून 1956 (हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 लागू होने की तिथि) से पहले हुई थी, तो बेटी अपने पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सा या दावा नहीं कर सकती।
न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार व्यास की एकल पीठ ने यह फैसला सुनाते हुए निचली अदालतों के आदेश को बरकरार रखा। अदालत ने कहा कि 1956 से पहले हुए उत्तराधिकार विवादों में हिंदू मिताक्षरा कानून लागू होगा। मिताक्षरा कानून के अनुसार, यदि किसी हिंदू पुरुष की मृत्यु 1956 से पहले हो जाती है, तो उसकी संपत्ति—चाहे पैतृक हो या स्व-अर्जित—सीधे उसके पुत्र को मिलती है। बेटी केवल तभी अधिकार का दावा कर सकती थी, जब पिता की मृत्यु के समय कोई पुरुष वारिस (बेटा) जीवित न हो।
हाई कोर्ट ने यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के अरुणाचला गौंडर बनाम पोन्नुसामी (2022) समेत कई अन्य मामलों के आधार पर दिया है, जिनमें इस कानूनी स्थिति को दोहराया गया था। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि स्व-अर्जित संपत्ति के मामले में पिता अपनी मर्ज़ी से किसी को भी वसीयत के ज़रिए संपत्ति दे सकते हैं।
हालांकि, 2005 के संशोधन के बाद बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में बेटों के समान अधिकार दिए गए हैं, लेकिन यह प्रावधान केवल 1956 के बाद हुए उत्तराधिकार मामलों पर ही लागू होता है।
