मतांतरण के विरुद्ध में बस्तर का बिगुल -- गांव- गांव में मिशनरियों के प्रवेश पर रोक, बोर्ड में साफ- साफ लिखी चेतवानी, 'घर वापसी' की लहरें हुई तेज

 


जगदलपुर 27 अक्टूबर 2025 (नवचेतना न्यूज़ छत्तीसगढ़)। बस्तर जिले के सिड़मुर गांव में सुंदरादेवी मंदिर के पास लगाया गया बोर्ड इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। बोर्ड पर साफ शब्दों में लिखा है “पास्टर और पादरी का प्रवेश सख्त मना है।” यह संदेश उस जनआक्रोश की झलक देता है, जो बस्तर के गांवों में बढ़ते अवैध मतांतरण के विरोध में पनप रहा है।

भतरा जनजातीय बहुल इस गांव में चार दिन पहले हुई सामाजिक बैठक में ग्रामीणों ने ईसाई मिशनरियों और उनके सहयोगियों के प्रवेश पर सर्वसम्मति से रोक लगाने का निर्णय लिया। करीब 270 परिवारों वाले इस गांव के लोग कहते हैं अब अपनी संस्कृति, परंपरा और देवगुड़ियों की रक्षा हम खुद करेंगे।

गांव के युवक कार्तिक गोयल बताते हैं कि आसपास के इलाकों में ‘चंगाई सभा’ और ‘प्रार्थना’ के नाम पर लोगों को भय और भ्रम में डालकर धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है। जहां पहले देवगुड़ियां थीं, वहां अब चर्च खड़े हो गए हैं।

गांव के वरिष्ठ पाकलुराम भारती कहते हैं अगर यह चलन यूं ही चलता रहा, तो बस्तर की हजारों साल पुरानी संस्कृति मिट जाएगी। गांव में अभी सात-आठ परिवारों ने मतांतरण किया है, लेकिन ग्रामीण इसे आने वाले बड़े खतरे का संकेत मान रहे हैं। जहां 60–70 परिवार मतांतरित हो चुके हैं, वहां सामाजिक विभाजन और तनाव बढ़ चुका है।

डर से हुआ मतांतरण, अब घर में चर्च बन गया विवाद का कारण:

इसी गांव के बलराम कश्यप बताते हैं “मां कुष्ठ रोग से पीड़ित थीं। पादरी ने कहा था, प्रार्थना से ठीक हो जाएंगी। बीमारी नहीं गई, लेकिन पूरा परिवार मतांतरित हो गया।” अब बलराम के घर के आंगन में बना पक्का चर्च गांव में विवाद का केंद्र बन गया है।ग्रामसभा के ताजा निर्णय के बाद उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया है। तीन दिनों से उनकी किराने की दुकान पर कोई ग्राहक नहीं पहुंचा, और गांव की सीमा में अब मतांतरित परिवारों के शवों के दफनाने तक पर रोक लगा दी गई है। गांव दो खेमों में बंट चुका है।

कांकेर के 13 गांवों में भी लगा प्रतिबंध:

सिर्फ सिड़मुर ही नहीं, कांकेर जिले के नरहरपुर विकासखंड के 13 गांवों ने भी इसी तरह के प्रस्ताव पारित किए हैं। नवीनतम नाम जामगांव का है। ग्रामीणों का कहना है “हमारा विरोध किसी धर्म से नहीं, बल्कि लालच और प्रलोभन से कराए जा रहे मतांतरण से है, जो आदिवासी संस्कृति को तोड़ रहा है"। पांच माह पहले जामगांव में एक मतांतरित परिवार की मृत्यु के बाद विवाद बढ़ा था, जिसके बाद ग्रामसभा ने तय किया कि गांव की सीमा में बिना अनुमति कोई पास्टर या पादरी प्रवेश नहीं करेगा। अब अन्य गांव भी इसी राह पर चल पड़े हैं।

तेज़ी पकड़ रही ‘घर वापसी’ की लहर:

बस्तर में अब ‘घर वापसी’ की पहल भी तेज़ हो गई है। सिड़मुर से लगे अलनार गांव में शनिवार को 25 वर्ष पूर्व मतांतरित हुए एक परिवार के आठ सदस्यों ने पुनः सनातन धर्म ग्रहण किया। महारा समाज की पहल पर हुए इस पूजा-अनुष्ठान में इच्छाबती, नारायण, जयमनी, कंचन, दीपिका, सविता, बनू और कुमारी ने पारंपरिक विधि से धर्म में वापसी की। महारा समाज जिला उपाध्यक्ष आकाश कश्यप ने कहा हम किसी से वैर नहीं चाहते बस अपनी संस्कृति को बचाना चाहते हैं। जो लोग भ्रम में चले गए वे लौटें समाज उनके साथ है। समाज प्रमुखों के अनुसार, पिछले दो वर्षों में बस्तर अंचल के करीब 20 प्रतिशत मतांतरित परिवार फिर अपने मूल धर्म में लौट चुके हैं।

"यह धर्म नहीं, अस्मिता की लड़ाई है"

छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज के प्रांतीय अध्यक्ष राजाराम तोड़ेम का कहना है — जनजातीय समाज अब जाग चुका है। गांव खुद तय कर रहे हैं कि कौन उनके बीच आ सकता है और कौन नहीं। यह आंदोलन किसी धर्म के विरुद्ध नहीं, बल्कि संस्कृति और अस्मिता की रक्षा के पक्ष में है।