सूरजपुर, 15 सितम्बर 2025 (नवचेतना न्यूज़ छत्तीसगढ़)। एक तरफ देश चाँद पर तिरंगा फहरा रहा है, डिजिटल इंडिया के सपने सजाए जा रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ देश के कई हिस्सों में आज भी स्वास्थ्य सुविधाओं की तस्वीर दिल दहला देने वाली है। ताजा मामला छत्तीसगढ़ के प्रतापपुर ब्लॉक के ग्राम गोरगी का है, जहां कोडाकु जनजाति से ताल्लुक रखने वाले एक बीमार व्यक्ति को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए परिजनों को उसे कंधे पर उठाकर कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ा।
ग्राम गोरगी में रहने वाले इस आदिवासी व्यक्ति की अचानक तबीयत बिगड़ी। परिजनों ने एंबुलेंस के लिए कॉल किया, लेकिन वाहन दुर्गम इलाके तक पहुंच ही नहीं पाया। गांव तक सड़कें न होने के कारण मदद मिलने की उम्मीद भी धरी रह गई। मजबूरी में परिवार के लोगों ने बीमार को कपड़े में लपेटकर कंधों पर उठाया और पसीने से तर-बतर होकर कठिन पहाड़ी रास्तों को पार करते हुए अस्पताल की ओर निकल पड़े।
ये तस्वीर केवल एक बीमार व्यक्ति की नहीं है, बल्कि यह तस्वीर हजारों ऐसे ग्रामीणों की पीड़ा को बयान करती है जो आज भी मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हैं। कोडाकु जनजाति जैसे वनांचल क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की ये जद्दोजहद बताती है कि विकास का दावा अभी तक इन इलाकों तक नहीं पहुंचा।
पसीने से लथपथ चेहरे, कांपते कंधे, आंखों में चिंता और दिल में सिर्फ एक उम्मीद – कहीं समय रहते अस्पताल पहुंच जाएं और इलाज मिल सके। ये दृश्य सिर्फ एक परिवार का दर्द नहीं, बल्कि व्यवस्था पर सवालिया निशान है।
आज भी कई गांवों में सड़कें नहीं हैं, स्वास्थ्य केंद्रों में संसाधनों की भारी कमी है और एंबुलेंस सेवा सिर्फ नाम की रह गई है। सवाल उठता है कि 21वीं सदी में जब हम डिजिटल क्रांति और अंतरिक्ष मिशन पर गर्व कर रहे हैं, तब देश के नागरिकों को कंधों पर उठाकर अस्पताल पहुंचाने जैसी अमानवीय परिस्थितियों का सामना क्यों करना पड़ रहा है?
प्रतापपुर की यह घटना केवल एक हादसा नहीं बल्कि एक करारा सवाल है – आखिर कब तक ग्रामीणों को अपनी जान बचाने के लिए इस तरह के संघर्ष से गुजरना पड़ेगा? कब तक यह तस्वीर बदलेगी? जिम्मेदारी कौन लेगा?