छात्रावास मरम्मत घोटाला: बड़े अफसर अब तक बरी, डाटा एंट्री ऑपरेटर और ठेकेदारों पर कार्रवाई; गायब दस्तावेजों से जांच अटकी

 




कोरबा, 08 सितम्बर 2025(नवचेतना न्यूज़ छत्तीसगढ़)। कोरबा जिला में विकास विभाग के छात्रावास मरम्मत घोटाले में अब तक रसूखदार अफसरों तक कानून के हाथ नहीं पहुंच पाए हैं। बड़े अधिकारी खुलेआम घूम रहे हैं, जबकि आदिवासी विकास विभाग ने इस पूरे मामले का ठीकरा सिर्फ एक डाटा एंट्री ऑपरेटर और चार ठेकेदारों पर फोड़ दिया है।


इस घोटाले में विभाग के तत्कालीन सहायक आयुक्त माया वारियर, सहायक अभियंता अजीत कुमार तिग्गा और लोक निर्माण विभाग के सब-इंजीनियर राकेश वर्मा की भूमिका को लेकर विभाग खामोश है। इन अफसरों पर केवल विभागीय जांच का पत्र जारी किया गया, जबकि शुरुआत में जिला प्रशासन ने कलेक्टर के निर्देश पर समिति गठित कर पूरे मामले की जांच कराई थी। जांच समिति ने केवल ठेकेदारों और डाटा एंट्री ऑपरेटर को दोषी ठहराया, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया कि अफसरों ने किस स्तर पर ठेकेदारों को संरक्षण दिया। इतना ही नहीं, आदिवासी विकास विभाग ने उनके खिलाफ सिविल लाइन थाना में एफआईआर तक दर्ज नहीं कराई।


 गड़बड़ी का जाल:


विभागीय योजनाओं में अनियमितताओं का खेल कोई नया नहीं है। केंद्र और राज्य से मिलने वाले करोड़ों के बजट का दुरुपयोग लंबे समय से चर्चा में है। अगस्त के पहले पखवाड़े में चार ठेकेदारों पर मुकदमा दर्ज हुआ—


साई ट्रेडर्स पॉलीवाल बुक डिपो, बालाजी मंदिर रोड, रामपुर कोरबा

मेसर्स साईं कृपा बिल्डर्स, मंगल भवन, बाजार चौक, छुरी

मेसर्स एसएसए कंस्ट्रक्शन, मेन रोड, चैतमा साजा बहरी

मेसर्स बालाजी इंफ्रास्ट्रक्चर, जायसवाल हाउस, राजीव नगर, कोरबा


इन ठेकेदारों को क्रमशः ₹32.95 लाख, ₹79.01 लाख, ₹43.36 लाख और ₹1.35 करोड़ का भुगतान किया गया, लेकिन विभाग का आरोप है कि ठेकेदारों ने भुगतान लेने के बावजूद काम पूरा नहीं किया।



 कोर्ट का झटका, पुलिस की ढिलाई:


घोटाले में आरोपी ठेकेदारों ने अग्रिम जमानत के लिए निचली अदालत का दरवाजा खटखटाया। अदालत ने दो ठेकेदारों की जमानत याचिका खारिज कर दी, लेकिन इसके बावजूद पुलिस ने अब तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया। आरोपियों की ओर से अब जमानत के लिए तेजी से प्रयास किए जा रहे हैं।


 गायब दस्तावेजों से बढ़ी जांच की चुनौती:


इस घोटाले की असली सच्चाई अब तक सामने नहीं आई है। विभागीय चर्चा है कि अफसरों और ठेकेदारों की मिलीभगत से करोड़ों का घोटाला हुआ। लेकिन जांच में सबसे बड़ी चुनौती सबूत जुटाने की है। आदिवासी विकास विभाग ने पहले ही पुलिस को बताया था कि इस घोटाले से जुड़े टेंडर और अन्य दस्तावेज कार्यालय से गायब हैं।