स्नेह सदन: बुजुर्गों के लिए प्यार, सम्मान और अपनापन का आशियाना

 


स्नेह सदन: बुजुर्गों के लिए प्यार, सम्मान और अपनापन का आशियाना


कोरबा,03 सितम्बर 2025(नवचेतना न्यूज़ छत्तीसगढ़)/ उम्र के उस मोड़ पर जब हाथों में कंपकंपी होती है, कदम डगमगाने लगते हैं और आंखों में अकेलेपन की टीस उभरती है, तब इंसान को सबसे ज्यादा जरूरत होती है सिर्फ एक गर्मजोशी भरे स्पर्श की, एक अपनत्व भरी आवाज़ की। बुजुर्गों की यही ज़रूरत समझ कर कोरबा जिले के सर्वमंगला नगर में बना स्नेह सदन वृद्धाश्रम उनके लिए सिर्फ एक ठिकाना नहीं, बल्कि प्यार और सम्मान से भरा एक परिवार है।


यहाँ की दीवारें केवल ईंट और सीमेंट से नहीं बनीं, बल्कि हर कोने में अपनापन और स्नेह की खुशबू है। जिला प्रशासन की पहल और राज्य सरकार के मार्गदर्शन में जिला खनिज संस्थान न्यास निधि से बना यह आश्रम आज उन बुजुर्गों के लिए उम्मीद का घर है जिन्हें अपने ही अपनों ने भुला दिया था। यहाँ 26 बुजुर्ग—11 पुरुष और 15 महिलाएं—रहते हैं। अलग-अलग कहानियों, अलग-अलग संघर्षों से गुज़रकर वे यहाँ पहुंचे हैं, लेकिन आज वे सब एक-दूसरे के साथी, दोस्त और परिवार हैं।


यहाँ की व्यवस्थाएं बुजुर्गों को घर जैसा सुकून देती हैं—


भोजन: पौष्टिक, स्वादिष्ट और माँ के हाथों जैसा।


रहने की सुविधा: आरामदायक बिस्तर, हर जगह सफाई और स्वच्छता।


सुरक्षा: सीसीटीवी निगरानी, निजी अलमारी और आधुनिक सुविधाएं।


मनोरंजन और देखभाल: खेल, भजन, सत्संग और नियमित स्वास्थ्य जांच।



ऊर्जा से भरी दिनचर्या

हर सुबह योग और ध्यान से शुरू होती है, फिर सामूहिक नाश्ता। दिनभर हंसी-मजाक, टीवी देखना, खेलना और बातचीत का सिलसिला चलता है। दोपहर का भोजन करने के बाद सब थोड़ी देर विश्राम करते हैं। शाम होते-होते कैरम, कुर्सी दौड़, अंताक्षरी जैसे खेल आश्रम का माहौल जीवंत बना देते हैं। रात को सामूहिक भोजन और हल्की सैर के बाद सब चैन की नींद सोते हैं।


यहाँ रह रहे बुजुर्ग कहते हैं कि आश्रम का माहौल इतना सकारात्मक और स्नेहमय है कि उन्हें अपने पुराने घर की कमी महसूस ही नहीं होती।


वृद्धों की कहानी, स्नेह सदन की ज़ुबानी


पदुम डडसेना, जो सारंगढ़ जिले से आए हैं, बताते हैं,

“पहली बार यहाँ आया तो मन में डर था। लगा पता नहीं लोग कैसे होंगे। लेकिन यहाँ तो सब दोस्त बन गए। अब लगता है जैसे मुझे एक नया परिवार मिल गया।”


मुंगेली जिले की कमला बाई कहती हैं,

“यहाँ किसी चीज़ की कमी नहीं। त्योहार सब मिलकर मनाते हैं। अभी गणेश चतुर्थी चल रही है—मंदिर में मूर्ति स्थापित है, ढोलक पर भजन गाते हैं। यहाँ घर से ज्यादा सुविधा है और अब घर की याद भी नहीं आती।”


स्नेह सदन: उम्मीद की किरण

अधीक्षिका सुश्री मेघा प्रधान, जो यहाँ के सभी बुजुर्गों का माँ की तरह ख्याल रखती हैं, कहती हैं,

“शारीरिक सुविधाएं देना आसान है, लेकिन सबसे कठिन काम है अकेलेपन का इलाज करना। जब बुजुर्ग यहाँ आते हैं, उनका मन टूट चुका होता है। लेकिन धीरे-धीरे प्यार, बातचीत और अपनापन उन्हें फिर से जीने का हौसला देता है।”



आज स्नेह सदन न सिर्फ कोरबा, बल्कि पूरे राज्य के लिए एक मिसाल है कि कैसे सरकार और प्रशासन मिलकर बुजुर्गों के जीवन को सम्मान और गरिमा से भर सकते हैं। यहाँ बुजुर्ग सिर्फ जी नहीं रहे, बल्कि फिर से मुस्कुरा रहे हैं, प्यार पा रहे हैं और नए परिवार का हिस्सा बन चुके हैं।


यह जगह हमें सिखाती है कि बुढ़ापा कोई बोझ नहीं, बल्कि जीवन का एक खूबसूरत अध्याय है—अगर उसे सम्मान और स्नेह से जिया जाए।